Khatu Shyam Ka Janam: कहां हुआ था खाटू श्याम का जन्म कोई नहीं जानता ये रहस्य

Khatu Shyam Ka Janam: कृष्ण जी के जीवन में बहुत तरह की अनेकों घटनाएं हुई थी, जिसमे से एक थी महाभारत की घटना. इस युद्ध में भले ही कृष्ण ने अस्त्र शस्त्र न उठाने का प्रण लिया हो. पर अपनी बुद्धि और चतुराई से उन्होंने पांडवों को पूरा महाभारत जीत दिया था. इन सब कड़ियों में एक लीला कृष्ण जी की बर्बरीक के साथ भी थी, बर्बरीक जिन्हे आज हम खाटू श्याम के नाम से जानते है. जो पांडवों के दूसरे ज्येष्ठ भ्राता भीमसेन के पोते थे. कुछ पुरानी कहानियों और किताबों के अनुसार बर्बरीक पूर्वजन्म में यक्ष थे. जिनका जन्म द्वापरकाल में भीमसेन के पोते के रूप में हुआ था. दरअसल, भीम का विवाह राक्षसी हिडिंबा के साथ हुआ था. जिसके बाद उन्हे एक पुत्र हुआ जो था घटोत्कच. बर्बरीक भीम का पोत था जो कि अपने पिता घटोत्कच और दादा भीमसेन जितना ही बलवान और हमेशा सत्य का साथ देने वाला था. महान योद्धाओं और बारे-बारे वीरों को बर्बरीक ने हराया था. उस योद्धा को हम आज खाटू श्याम महाराज के रूप में पूजते है

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बर्बरीक बचपन से ही वीर योद्धा रहे थे. उनकी माता ने ही उन्हे युद्ध और अस्त्र शस्त्र की दीक्षा दी थी. दरअसल, बर्बरीक की माता ने मां आदिशक्ति की घोर तपस्या कर उन्हे प्रसन्न किया था और वरदान के रूप में तीन तीन अभेद्य बाण मांगे थे. मां आदिशक्ति ने बर्बरीक की मां को तीन अभेद्य बाण प्रदान किए थे, जिससे वह “तीन बाणधारी” के नाम से प्रसिद्ध हुईं. इन अद्भुत बाणों के साथ ही वाल्मीकि ने उन्हें एक धनुष भी दिया था, जो तीनों लोकों में विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य प्रदान करता था. इन दिव्य शस्त्रों की शक्ति ने बर्बरीक की मां को अद्वितीय बनाया.

जब कौरव और पांडवों के बीच युद्ध तय हो गया, तो इसकी जानकारी बर्बरीक को भी मिली. उन्होंने युद्ध में शामिल होने का निश्चय किया और अपनी मां से आशीर्वाद लेकर प्रस्थान के लिए तत्पर हुए. उनकी मां ने उनसे वचन लिया कि वे हारे हुए पक्ष का साथ देंगे. बर्बरीक, जो मां आदिशक्ति द्वारा दिए गए तीन बाण और धनुष के स्वामी थे, अजेय योद्धा थे. उनकी उपस्थिति से जिस पक्ष में वे लड़ते, उसकी जीत निश्चित हो जाती.

भगवान कृष्ण भलीभांति जानते थे कि इस युद्ध में कौरवों की हार निश्चित है और बर्बरीक को अपनी माता के वचन के कारण हारे हुए पक्ष का साथ देना पड़ेगा. इसलिए वे ब्राह्मण के वेश में बर्बरीक को रोकने के लिए निकले. मार्ग में उन्होंने बर्बरीक से युद्ध में जाने का उद्देश्य पूछा. जब बर्बरीक ने तीन बाणों की शक्ति बताई, तो कृष्ण ने इसे चुनौती दी. बर्बरीक ने उत्तर दिया कि एक बाण ही समूची शत्रु सेना का नाश कर सकता है और फिर अपने तरकस में लौट आता है और यदि तीनों बाणों का उपयोग किया गया, तो त्रिलोक में तबाही मच सकती थी. ब्राह्मण वेशधारी श्रीकृष्ण ने इसे परखने के लिए बर्बरीक को चुनौती दी कि वह पीपल के पेड़ के सभी पत्तों को एक बाण से भेदकर दिखाए. बर्बरीक ने ध्यान लगाकर बाण छोड़ा, जिसने पल भर में सभी पत्तों को भेद दिया. कृष्ण ने एक पत्ता पैर के नीचे छुपा लिया था, जिससे बाण उनके पास मंडराने लगा. बर्बरीक ने निवेदन किया कि पैर हटाएं, अन्यथा बाण उन्हें चोट पहुंचा सकता है.

ब्राह्मण के वेश में पहुंचे श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से दान की मांग की. बर्बरीक ने विनम्रता से यथासंभव दान देने का वचन दिया. उनके इस वचन पर श्रीकृष्ण ने उनसे उनके सिर का दान मांगा. यह सुनकर बर्बरीक ने ब्राह्मण वेशधारी से उनके वास्तविक रूप में दर्शन देने का अनुरोध किया. इस पर श्रीकृष्ण ने चतुर्भुज रूप में प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए और समझाया कि युद्ध के प्रारंभ से पहले एक वीर क्षत्रिय के सिर की आवश्यकता है. बर्बरीक ने सिर का दान करने के लिए सहमति दी, लेकिन साथ ही उन्होंने यह इच्छा व्यक्त की कि उनके कटे सिर को पूरे युद्ध का साक्षी बनने का अवसर मिले. श्रीकृष्ण ने उनकी यह अभिलाषा स्वीकार की और बर्बरीक के सिर को रणभूमि के समीप एक ऊंचे पहाड़ की चोटी पर स्थापित कर दिया, जहां से उनका सिर पूरे युद्ध को देखता रहा. युद्ध समाप्ति के बाद, पांडवों के बीच यह विवाद छिड़ गया कि इस विजय का श्रेय किसे दिया जाए. तब श्रीकृष्ण ने कहा कि बर्बरीक, जिन्होंने युद्ध को आरंभ से अंत तक देखा है, इस प्रश्न का निर्णय कर सकते हैं. बर्बरीक के कटे सिर ने उत्तर दिया कि युद्ध की विजय का सारा श्रेय श्रीकृष्ण को जाता है. उन्होंने बताया कि यह केवल श्रीकृष्ण की बुद्धिमत्ता, चातुर्य, साहस, और युद्धनीति की कुशलता थी, जिसने इस युद्ध को निर्णायक रूप दिया.

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