
Baba khatu shyam: बर्बरीक को दुनिया का अद्वितीय धनुर्धर माना जाता था। उनके पास केवल तीन बाण थे, लेकिन उनकी शक्ति इतनी अद्भुत थी कि वे इन तीन बाणों से ही कौरव और पांडव दोनों की पूरी सेना का विनाश कर सकते थे। जब युद्ध का समय आया, तो भीम के पौत्र बर्बरीक दोनों सेनाओं के बीच स्थित एक पीपल के वृक्ष के नीचे खड़े हो गए और घोषणा की कि वे उसी पक्ष का समर्थन करेंगे जो पराजित हो रहा होगा। उनकी इस घोषणा ने श्रीकृष्ण को चिंतित कर दिया।
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भीम के पौत्र बर्बरीक की वीरता का प्रमाण देखने के लिए अर्जुन और भगवान श्रीकृष्ण स्वयं उसके सामने उपस्थित हुए। बर्बरीक ने अपनी अद्भुत वीरता का एक छोटा-सा प्रदर्शन करने की स्वीकृति दी। श्रीकृष्ण ने उससे कहा, “इस वृक्ष के सभी पत्तों को एक ही तीर से छेदकर दिखाओ, तब मैं तुम्हारी क्षमता को स्वीकार करूंगा।” बर्बरीक ने श्रीकृष्ण की आज्ञा लेकर अपना तीर वृक्ष की ओर चला दिया।
जब तीर एक-एक करके सभी पत्तों को छेदता चला जा रहा था, तभी एक पत्ता टूटकर नीचे गिर गया। श्रीकृष्ण ने सोचा कि इस पत्ते को छेदने से बचा लिया जाए, इसलिए उन्होंने अपने पैर से उसे ढक लिया। लेकिन तीर सभी पत्तों को छेदता हुआ श्रीकृष्ण के पैरों के पास आकर ठहर गया। तब बर्बरीक ने कहा, “प्रभु, आपके पैर के नीचे एक पत्ता दबा हुआ है। कृपया अपना पैर हटा लें, क्योंकि मैंने तीर को केवल पत्तों को छेदने का आदेश दिया है, आपके चरणों को नहीं।”
बर्बरीक की इस अद्भुत क्षमता को देखकर श्रीकृष्ण गहन चिंता में पड़ गए। उन्हें यह भलीभांति पता था कि बर्बरीक अपनी प्रतिज्ञा के अनुसार हारने वाले पक्ष का समर्थन करेगा। यदि युद्ध में कौरव हारने की स्थिति में आते, तो वह उनकी ओर हो जाता, जिससे पांडवों के लिए बड़ी समस्या खड़ी हो जाती। और यदि पांडव बर्बरीक के समक्ष हारते हुए दिखते, तो वह उनकी ओर हो जाता। इस प्रकार, बर्बरीक अपनी असाधारण शक्ति से दोनों सेनाओं का विनाश करने में सक्षम था।
तब भगवान श्रीकृष्ण ने ब्राह्मण का वेश धारण किया और सुबह-सुबह बर्बरीक के शिविर के द्वार पर पहुँचकर दान की याचना करने लगे। बर्बरीक ने आदरपूर्वक कहा, “मांगिए ब्राह्मण देवता, आपको क्या चाहिए?” ब्राह्मणरूपी श्रीकृष्ण ने उत्तर दिया, “जो मैं मांग रहा हूँ, वह देना तुम्हारे लिए कठिन होगा।” बर्बरीक श्रीकृष्ण के कुशल जाल में आ गए, और तब श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश दानस्वरूप मांग लिया।
बर्बरीक ने अपने पितामह पांडवों की विजय सुनिश्चित करने के लिए स्वेच्छा से अपना शीश दान कर दिया। उनके इस अद्वितीय बलिदान से प्रभावित होकर, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को वरदान दिया कि कलियुग में वे उनके नाम से पूजे जाएंगे। आज बर्बरीक को खाटू श्याम के रूप में पूजा जाता है। जिस स्थान पर श्रीकृष्ण ने उनका शीश स्थापित किया था, वह स्थान खाटू के नाम से प्रसिद्ध हुआ।