khatu shyam: खाटू श्याम के भक्तों के लिए क्यों खास है एकादशी

khatu shyam: बाबा श्याम को कलयुग का अवतार माना जाता है और उन्हें “हारे का सहारा” भी कहा जाता है. हर साल लाखों भक्त बाबा श्याम के दरबार में शीश नवाने के लिए आते हैं. लेकिन क्या आप जानते हैं कि बाबा श्याम कौन हैं और खाटू श्याम जी का मंदिर क्यों बनाया गया है, जो आज पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है?

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महाभारत में वर्णित है कि भीम के पुत्र घटोत्कच थे और उनके बेटे बर्बरीक थे. बर्बरीक देवी मां के परम भक्त थे. उनकी तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर देवी मां ने उन्हें तीन विशेष बाण दिए, जिनमें से एक बाण से वह पूरी पृथ्वी का विनाश कर सकते थे. जब महाभारत का युद्ध शुरू हुआ, तब बर्बरीक ने अपनी मां हिडिम्बा से युद्ध में भाग लेने का प्रस्ताव रखा. हिडिम्बा ने सोचा कि कौरवों की सेना बड़ी है और पांडवों की सेना छोटी, इसलिए कौरवों का पक्ष युद्ध में पांडवों पर भारी पड़ सकता है. उन्होंने कहा कि तुम उस पक्ष की ओर से लड़ोगे जो हार रहा होगा. इसके बाद बर्बरीक ने अपनी मां की आज्ञा मानी और महाभारत के युद्ध में भाग लेने के लिए चल पड़े. लेकिन भगवान श्री कृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक युद्ध स्थल पर पहुंच गए तो पांडवों की जीत सुनिश्चित हो जाएगी, क्योंकि वह कौरवों की ओर से लड़ने वाले थे. इसलिए भगवान कृष्ण ने ब्राह्मण का रूप धारण किया और बर्बरीक के पास पहुंचे.

तब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश दान में मांग लिया. बर्बरीक ने बिना किसी प्रश्न के अपने शीश को दान स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया. इस महान दान के कारण श्री कृष्ण ने बर्बरीक से कहा कि तुम कलयुग में मेरे नाम से पूजे जाओगे, तुम श्याम के रूप में प्रतिष्ठित होगे, और कलयुग के अवतार के रूप में प्रसिद्ध होगे. तुम्हें हारे का सहारा माना जाएगा.

जब घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपना शीश भगवान श्री कृष्ण को दान में दे दिया, तो बर्बरीक ने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा व्यक्त की. तब श्री कृष्ण ने बर्बरीक के शीश को एक ऊंचे स्थान पर रखकर महाभारत युद्ध दिखाया. युद्ध की समाप्ति के बाद भगवान कृष्ण ने बर्बरीक के सिर को गर्भवती नदी में प्रवाहित कर दिया. इस प्रकार बर्बरीक, यानी बाबा श्याम का शीश गर्भवती नदी के माध्यम से खाटू (उस समय खाटुवांग शहर) पहुंच गया. यह भी जान लें कि खाटूश्यामजी के मंदिर में स्थित गर्भवती नदी 1974 में लुप्त हो गई थी.

स्थानीय लोगों के अनुसार, पीपल के पेड़ के पास एक गाय प्रतिदिन अपने आप दूध देती थी. जब लोगों ने उस स्थान की खुदाई की, तो वहां से बाबा श्याम का सिर प्राप्त हुआ. यह सिर फाल्गुन माह की ग्यारस को निकला था, इस कारण बाबा श्याम का जन्मोत्सव भी फाल्गुन माह की ग्यारस को मनाया जाता है. खुदाई के बाद, ग्रामीणों ने बाबा श्याम का सिर चौहान वंश की नर्मदा देवी को सौंप दिया. इसके बाद नर्मदा देवी ने बाबा श्याम को गर्भ गृह में प्रतिष्ठित किया, और जहाँ बाबा श्याम का सिर प्राप्त हुआ था, वहां एक श्याम कुंड का निर्माण किया गया.

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