Khatu Shyam: खाटू श्याम पर मोरपंख और निशान लगाना क्यों माना जाता है इतना शुभ

Khatu Shyam: जो भक्त जीवन में एक बार भी बाबा श्याम के द्वारे आता है (Khatu Shyam), फिर वो हमेशा के लिए बाबा श्याम का हो जाता है,बाबा श्याम अपने भक्त को फिर कभी हारने नहीं देते. आप जब भी चुलकाना धाम आयेंगे, हर दिन भक्तों की भीड़ ही भीड़ पायेंगे,रविवार और खासकर एकादशी के दिन तो यहाँ पैर रखने की जगह नहीं रहती, बाबा श्याम (Khatu Shyam) की महिमा है ही ऐसी, यहाँ भक्तों की एक से एक कहानी सुनने को मिलती है, एक बार ऐसा ही एक भक्त बाबा श्याम (Khatu Shyam) के पास आया था,वो शिक्षक बनना चाहता था लेकिन परीक्षा में बार बार की असफलता ने उसे हर तरफ से निराश किया हुआ था,माँ बाप भी उम्मीद छोड़ चुके थे,परिवार रिश्तेदारों के तानों से तंग आकर युवा मन विचलित हो चुका था,उसे समझ नहीं आ रहा था आखिर वो जाए तो जाए कहाँ, अचानक किसी ने उसे कहा तुम तो हरियाणा में हो,पानीपत चले जाओ, वहां समालखा कस्बे से कुछ दूरी पर ही चुलकाना धाम है, वहां अगर तुमने बाबा श्याम के दर्शन कर लिए तो तुम किसी परीक्षा में कभी असफल नहीं होगे. बाबा श्याम हारे का सहारा हैं, सच्ची श्रद्धा से यहाँ आने वाला भक्त कभी खाली हाथ वापिस नहीं जाता, बाबा श्याम ने तो त्रिलोक के स्वामी भगवान श्री कृष्ण की इच्छा का मान रखा. उन्हें अपने शीश का दान दिया. तुम भी जाओ !
युवा जैसे ही चुलकाना धाम आया, उसे सहारा मिला, बाबा श्याम के नाम का.


बाबा श्याम की महिमा ने चमत्कार किया, युवा परीक्षा में उत्तीर्ण हुआ. बाबा श्याम के चमत्कारों की गाथा बस यही नहीं है,ये गाथा तो महाभारत काल से चली आ रही है. द्वापर युग की बात है,महाभारत युद्ध होने वाला था, भगवान कृष्ण जानते थे कि अगर बर्बरीक इस युद्ध में शामिल हुए तो युद्ध कभी खत्म ही नहीं होगा क्योंकि एक बर्बरीक ही थे जिन्हें भगवान शिव और आदि शक्ति से तीन ऐसे बाण मिले थे जिनसे वो जब चाहते तब युद्ध को समाप्त कर देते. फिर क्या होता धर्म का क्योंकि बर्बरीक ने अपनी माँ से वादा किया था कि जो युद्ध में हारेगा वो सिर्फ उन्हीं का साथ देंगे,भगवान कृष्ण समझ चुके थे कि जो भी हो अब बर्बरीक को युद्ध में शामिल होने से रोकना है और इसके लिए उन्होंने ब्राहमण का भेष बदला,ब्राहमण भेष में उन्होंने बर्बरीक से उनका शीश मांग लिया.बर्बरीक समझ चुके थे ये कोई ब्राहमण नहीं हैं लेकिन दान में कुछ माँगा है तो देना तो होगा ही सो उन्होंने दान में अपने शीश का दान दिया, भगवान कृष्ण बर्बरीक से बहुत प्रसन्न हुए और उन्होंने बर्बरीक को वरदान दिया कि तुम मेरे नाम से कलियुग में जाने जाओगे,मेरी सारी शक्तियां तुममें होंगी,तुम्हारी पूजा करने वाला कभी हारेगा नहीं,हे बर्बरीक ! तुम अमर हो, हरियाणा के पानीपत जिले के समालखा कस्बे से कुछ दूरी पर वही धाम मौजूद है जहाँ चुलकाना धाम है,ये वही धाम है जहाँ भगवान कृष्ण को भीम के पोते और घटोत्कच पुत्र बर्बरीक ने अपने शीश का दान दिया. महावीर,महादानी बर्बरीक ही बाबा श्याम हैं, वही हारे के सहारे हैं, उन्होंने ब्राह्मण भेष में भगवान कृष्ण को खाली हाथ नहीं लौटाया तो वो आपको कहाँ से खाली हाथ लौटायेंगे तो चले आयें चुलकाना धाम, जहाँ हुआ था शीश का दान, वो पावन भूमि है चुलकाना धाम !

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