
Chulkana dham Peepal Tree Rahasya : चुलकाना धाम के श्री श्याम मंदिर में जहाँ आना हर सनातनी हिन्दू की आत्मिक इच्छा होती है, उनका मनोभाव होता है और कई इस भाव से वशीभूत होकर दर्शन करने चले आते हैं,दूरी मायने नहीं रखती,मायने रखती बाबा श्याम से निकटता..जिसे ये सौभाग्य मिला उसका जीवन तर गया,कौन है जो यहाँ नहीं आना चाहता |
चुलकाना धाम” के कण कण में बाबा श्याम की महिमा है. बाबा श्याम ‘हारे का सहारा’ हैं जो अपने सच्चे भक्तों को कभी हारने नहीं देते . यहाँ आने वाली भक्तों की भीड़ से आप अंदाजा लगा सकते हैं कि ये स्थान कितना जागृत और विख्यात है, पुराणों की बात करें तो आप स्कन्द पुराण में इस स्थान से जुड़े रहस्यों को जान सकते हैं और अगर अतीत का प्रमाण चाहते हैं. तो कहते हैं द्वापर काल में जब महाभारत का युद्ध हुआ था तब यही वो स्थान है जहाँ भीम पुत्र घटोतकक्ष के पुत्र बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश दान किया था,
बर्बरीक को प्राप्त था आशीर्वाद
कहते हैं बर्बरीक को भगवान शिव, माँ आदि शक्ति भवानी और अग्नि देव से आशीर्वाद प्राप्त था,स्कन्द पुराण में बताया गया है की आदि शक्ति से बर्बरीक को तीन ऐसे बाण मिले थे जिससे पूरी सृष्टि का अंत हो सकता था..भगवान श्री कृष्ण महाभारत युद्ध का परिणाम जानते थे और वो जानते थे अगर बर्बरीक रहे तो युद्ध कभी खत्म ही नहीं होगा और इसका कारण था बर्बरीक का अपनी माँ को दिया वो वचन जिसमें उन्होंने कहा था कि वो सिर्फ और सिर्फ “ हारे का सहारा बनेगें”
भगवान श्री कृष्ण तो अन्तर्यामी हैं,वो सब जानते हैं इसलिए उन्होंने बर्बरीक की परीक्षा लेनी चाहिए, वो एक पीपल के पेड़ के नीचे ब्राह्मण के वेश में प्रकट हुए और उन्होंने बर्बरीक से एक बाण से सभी पत्तों को भेदने को कहा…आप ये पेड़ देख रहे हैं ..
पीपल के पेड़ का रहस्य
ये वही पीपल का पेड़ है जहाँ भगवान कृष्ण ने ब्रह्मण वेश में बर्बरीक की परीक्षा ली थी,कहते हैं बर्बरीक ने भगवान कृष्ण की आज्ञा का मान किया और एक ही बाण से सभी पत्तों को भेद दिया, कहते हैं उसके बाद पीपल के हर पत्तों में छेद हो गया,आज भी इस पेड़ के पत्तों में ये प्रमाण दिखाई देते हैं |
देखिये कैसे ये पेड़ उस समय के इतिहास को समेटे हुए है हालंकि कई लोगों का मानना है महाभारत युद्ध को हुए 5 हज़ार से भी ज्यादा का समय बीत चुका है इसलिए ये पेड़ उस युग से भले ही अब तक न रहा हो लेकिन पेड़ की शाखा से निकला अंश जरुर हो सकता है नहीं तो आप ही सोचिये हज़ारों साल बाद भी ऐसा संयोग कैसे संभव है ?
इसी पेड़ के नीचे बर्बरीक ने ब्राहमण वेश में आये भगवान कृष्ण को अपने शीश का दान दिया.. कहते हैं घटोत्कक्ष पुत्र बर्बरीक का शीश खाटू श्याम में मूर्ति स्वरुप में स्थापित हैं, जबकि उनका धर यहाँ चुलकाना धाम में है, दरसल इसके पीछे एक पौराणिक कहानी है, कहते हैं जो शीश भगवान श्री कृष्ण को दान में दिया वो शीश सरस्वती नदी के जरिये खाटू श्याम, राजस्थान में निकला और वहां खटूआंग नाम के राजा ने इस शीश स्वरूप को स्थापित किया और एक भव्य मंदिर बनाया तभी से खाटू श्याम में बाबा श्याम के शीश स्वरुप की पूजा की जाती है जबकि चुलकाना धाम में बाबा श्याम के धर स्वरुप की पूजा की जाती है