
Chulkana dham Mahabharat: महाभारत ग्रंथ के रचयिता थे महऋषि वेद व्यास, महाराज विदुर और बर्बरीक की तरह महऋषि वेद व्यास भी महाभारत युद्ध की एक एक घटना के साक्षी रहे लेकिन फिर भी कुछ प्रश्न ऐसे थे जिनको लेकर महऋषि वेद व्यास बड़े कंफ्यूज थे | अब सवाल था वो इन प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए जाएं कहां ?
आखिरकार उन्होंने सोचा कि भीम पौत्र और घटोतकक्ष के पुत्र बर्बरीक के पास जाया जाए क्योंकि एक वही थे जिन्होंने युद्धभूमि में रहकर एक एक घटना देखी थी, वही बता सकते थे कि आखिर इस भयानक युद्ध के असली नायक कौन रहे?
आप भी सोचेंगे कि इसमें क्या पूछना है,जो जीता वही हीरो, जो हारा वो जीरो लेकिन महऋषि वेद व्यास इसकी पुष्टि एक्सपर्ट से चाहते थे और बर्रबरीक से बेहतर वो एक्सपर्ट और कौन हो सकता था, महऋषि वेद व्यास ने पांचों पांडवों को साथ लिया और पहुंच गए रणभूमि,रणभूमि में हर तरफ सन्नाटा पसरा था और दूर एक कोणे में बर्रबरीक का कटा शीश हवा में शांत चित्त लटका हुआ था, महऋषि वेद व्यास पांडवों के साथ बर्बरीक के पास पहुंचे |
बर्बरीक ने अपने सभी पितामाहों को एक साथ देखा तो बहुत प्रसन्न हुआ,उसने सबका अभिवादन किया और युद्ध में विजय प्राप्त करने के लिए जीत की बधाई दी,बर्बरीक ने सवाल किया कि आप सब एक साथ क्यों आये हैं ?
तब महऋषि ने पूछा, भीम पौत्र बर्बरीक, अब तो ये युद्ध समाप्त हो चुका है,युद्ध का रिजल्ट भी आ गया लेकिन क्या तुम बता सकते हो की इस युद्ध का असली नायक कौन है और किस किसका योगदान रहा ?
बर्बरीक ने ऐसा उत्तर दिया जिसकी उम्मीद खुद महऋषि वेद व्यास जी को नहीं थी,बर्बरीक ने कहा कि इस युद्ध का नायक हर एक योद्धा था जो विजयी होने की आशा से अपना सर्वस्व निछावर करने को तैयार था,रही बात योगदान की तो उसमें भी सभी बराबर सहभागी थे, बर्बरीक की बात सुनकर महऋषि वेद व्यास का कंफ्यूजन और बढ़ गया..
उन्होंने बर्बरीक से फिर प्रार्थना कि इस प्रश्न का उत्तर आप ही दे सकते हैं, याने वेद व्यास जी को “टू द पॉइंट’ आंसर चाहिए था..
बर्बरीक ने बिना देरी किये कहा “ कृष्ण और उनका सुदर्शन चक्र “ उन्होंने युद्ध में भगवान कृष्ण के सुदर्शन चक्र को ही पूरे युद्ध में भाग लेते देखा इसलिए इस युद्ध के असली नायक भगवान श्री कृष्ण ही हैं..
ये तो रही महाभारत युद्ध के असली नायक की बात लेकिन क्या आप जानते हैं अगर बर्बरीक युद्ध में भाग लेता तो असली नायक वाली बात पलट सकती थी..
बर्बरीक को भगवान शिव से तीन ऐसे बाणों का वरदान मिला था जिससे वो कोई भी युद्ध जब चाहे ख़त्म कर सकता था, तीनों लोकों का अंत कर सकता था,दरअसल उन्होंने अपनी माँ को प्रॉमिस किया था की वो युद्ध में उसकी टीम में रहेंगे ‘जो युद्ध में हार रहे होंगे”उनकी माँ कोई साधारण हाउस वाइफ नहीं थी,उनका नाम अहिलावती था जिन्हें मोरवी नाम से भी जाना जाता है,बर्बरीक को युद्ध कौशल सीखाने वाली उनकी माँ ही थी तो एक तरह से वो उनकी टीचर भी हुई..माँ से तो एक बार प्रॉमिस तोड़ भी दिया जाए क्योंकि माँ तो आसानी से माफ़ कर देती हैं लेकिन टीचर से किया प्रॉमिस सजा भी दिला सकता था…
बर्बरीक का अपनी माँ को दिया यही प्रॉमिस महाभारत के युद्ध में भगवान कृष्ण की चिंता का कारण बना, श्री कृष्ण युद्ध का परिणाम जानते थे इसलिए वो जानते थे की अगर बर्बरीक इस युद्ध में शामिल हुआ तो ये युद्ध कभी खत्म होगा ही नहीं, वो बर्बरीक के पास गए और उन्होंने उनसे प्रश्न किया की वो इस युद्ध में किसकी तरफ हैं ? बर्बरीक ने सिम्पली कहा कि जो इस युद्ध में हारने वाला होगा उसके साथ वो रहेंगे,भगवान कृष्ण समझ गये थे की बर्बरीक अपनी माँ को दिए प्रॉमिस से पीछे हटने वाले नहीं हैं इसलिए उन्होंने कूटनीति लगाई..
कहते हैं न प्यार और जंग में सब जायज है, बस श्री कृष्ण एक साधू भेष में बर्बरीक के पास पहुंचे और उन्होंने बर्बरीक से वो मांग लिया जो उस समय दानवीरों की परीक्षा लेने में अक्सर मांगा जाता था..उनकी मृत्यु
साधू के वेश में भगवान श्री कृष्ण ने बर्बरीक से उनके युद्ध कौशल का सैंपल माँगा बर्बरीक भी तैयार था,उसने बिना समय बर्बाद किये एक ही बाण से पीपल के सारे पत्तों को छेद कर अपनी तैयारी की पूर्व सूचना दे दी,भगवान यही तो चाहते थे लेकिन अभी भी गेंद बर्बरीक के ही पाले में थी, भगवान कृष्ण ने आखिर में ब्राह्मण वेश में बर्बरीक से उनका शीश ही मांग लिया,बर्बरीक कुछ देर तो सोच में पड़ गया की भला एक ब्राहमण को मेरे शीश से क्या काम लेकिन फिर उन्होंने दान की महत्ता को समझते हुए अपना शीश काट कर भगवान कृष्ण को सौंप दिया, भगवान कृष्ण बर्बरीक की इस दानवीरता से बहुत प्रसन्न हुए और उन्हें अपने असली दर्शन दिए,बर्बरीक पहले से ही ये जान गया था की ये कोई साधू नहीं हैं बल्कि कोई और ही हैं लेकिन फिर भी वो पीछे हटे नहीं |
उन्होंने महाभारत युद्ध को देखने की इच्छा प्रकट की और भगवान कृष्ण ने दानवीर बर्बरीक की इच्छा पूरी की,साथ ही आशीर्वाद दिया कि वो कलियुग में उनके श्याम नाम से पूजे जायेंगे, क्योंकि हारे का सहारा बनने की क्षमता तो भगवान में ही होती है |
क्या आप जानने चाहते हैं की वो स्थान कहाँ हैं जहाँ बर्बरीक ने भगवान श्री कृष्ण को अपना शीश का दान किया ? वो पवित्र स्थान हरियाणा के पानीपत जिले में समलखा स्टेशन से 5 किलोमीटर दूरी पर चुलकाना धाम में है, यहाँ श्री श्याम मंदिर है जहाँ लोग हारे के सहारे बाबा |