
Chulkana Dham Bhakt: अगर आप श्याम बाबा के भक्त हैं तो राजस्थान के सीकर जिले में खाटू श्याम के दर्शन करने जरुर गये होंगे. खाटू श्याम वो पावन धाम है जहाँ भगवान कृष्ण केवल शीश रूप में विराजमान हैं लेकिन ये शीश यहाँ कहाँ से आया, इस रहस्य को खाटू श्याम के सच्चे भक्त भी नहीं जानते, आईये आपको बताते हैं खाटू श्याम में भगवान कृष्ण के शीश का वो रहस्य जिसका सम्बन्ध चुलकाना धाम से है.
खाटू श्याम का विश्वप्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के खाटू शहर में है,लाखों लोग यहाँ दूर दूर से बाबा श्याम के शीश के दर्शन करने आते हैं, निशाँ और गुलाब के फूल बाबा श्याम को अर्पित करते हैं लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि खाटू श्याम में ये शीश चुलकाना धाम से आया है.हरियाणा के पानीपत जिले के समालखा कस्बे से 5 किलोमीटर की दूरी पर चुलकाना गाँव में है चुलकाना धाम, ये वही स्थान है जहाँ से ये शीश रूपमती नदी होते हुए राजस्थान के खाटू गाँव में पहुंचा और फिर वहां मौजूद श्याम कुंड से प्रकट हुआ. चुलकाना धाम के कण कण में में बाबा श्याम के जन्म की महिमा का गुणगान है.
यही वो पावन धाम है जहाँ महाभारत युद्ध के समय अर्जुन से भी पहले भगवान कृष्ण ने भीम के परपोते वीर बर्बरीक को अपने विराट स्वरुप के दर्शन दिए. भगवान कृष्ण ने इस स्थान को कलियुग के सर्वोत्तम तीर्थ स्थान का नाम दिया है. वो यहाँ अपने परम भक्त बर्बरीक के रूप में हर क्षण श्याम रूप में अपने भक्तों पर कृपा करते हैं.यहाँ आने वाला भक्त कभी खाली हाथ नहीं लौटता.
चुलकाना धाम बाबा श्याम की नगरी है,बाबा श्याम महाभारत के बर्बरीक हैं जिन्हें भगवान कृष्ण ने अपने नाम से जाने जाने का आशीर्वाद दिया. कहते हैं बर्बरीक भीम और हिडिम्बा के पुत्र घटोत्कच के पुत्र थे. जिन्होंने भगवान शिव की,आदि शक्ति की बड़ी तपस्या की थी. भगवान शिव से उन्हें तीन अचूक बाण मिले थे जिससे वो जब चाहते तब महाभारत के युद्ध को समाप्त कर देते लेकिन वो अपनी माता मोरवी को दिए वचन से बंधे हुए थे. वचन के अनुसार वो युद्ध में केवल उसी का साथ देंगे जो हार रहा होगा.भगवान कृष्ण ये जानते थे कि बर्बरीक अपने वचन के विरुद्ध कभी नहीं जायेंगे इसलिए उन्होंने ब्राह्मण वेश में वीर बर्बरीक की परीक्षा ली. भगवान कृष्ण ने सबसे पहले अपने बाणों की शक्ति दिखाई और एक ही तीर से पीपल वृक्ष के सभी पत्तों में छेद कर दिया. यहाँ तक की जो पत्ता भगवान कृष्ण ने अपने पैरों के नीचे छिपा रखा था उसे भी बर्बरीक के बाणों ने भेद दिया था,भगवान कृष्ण जान चुके थे कि यदि बर्बरीक युद्ध में शामिल हुए तो ये युद्ध कभी समाप्त नहीं होगा.अंत में भगवान कृष्ण ने ब्राहमण वेश में वीर बर्बरीक से उनका शीश दान में मांग लिया. Read aslo: https://chulkanadham.in/chulkana-dham-mahabharat-
वीर बर्बरीक समझ गये थे कि ये कोई ब्राहमण नहीं हैं फिर भी उन्होंने अपना शीश भगवान कृष्ण के चरणों में भेंट कर दिया. चुलकाना धाम वही स्थान है जहाँ महादानी महावीर बर्बरीक ने अपने शीश का दान किया और यहीं वो पीपल का पेड़ भी मौजूद है जहाँ के पत्तों के छेद आज भी दिखायी देते हैं.ऐसा चमत्कारिक है चुलकाना धाम.
भगवान कृष्ण ने वीर बर्बरीक के त्याग से प्रसन्न होकर उन्हें माँ यशोदा का दिया हुआ ‘श्याम’ नाम दिया. अपनी 16 कलाओं को भी वीर बर्बरीक में समाहित किया और उन्हें कलियुग में श्याम नाम से सुविख्यात होने का वरदान दिया.बाबा श्याम को उनके भक्त हारे का सहारा कहते हैं. बाबा श्याम सच में हारे का सहारा हैं,चुलकाना धाम में आने वाला जीवन में कभी नहीं हारता. विश्वास नहीं होता तो एक बार चुलकाना धाम आयें. उस चुलकाना धाम में जहाँ दिया था शीश का दान।। जहां प्रकट हुए बाबा श्याम वह भूमि है खाटू धाम।।”