
Khatu Shyam Katha: बाबा श्याम को कलयुग में श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है. खाटू श्याम को हारे का सहारा भी कहा जाता है. हर वर्ष लगभग लाखों की तादाद में श्रद्धालु बाबा श्याम के दरबार में आशीर्वाद लेने पहुंचाते है. लेकिन, क्या आप जानते है कि बाबा श्याम कौन है और खाटू श्याम में इनका मंदिर क्यों बनवाया गया है. जो कि बहुत दूर दूर तक प्रसिद्ध है.
हरियाणा के पानीपत जिले के समालखा कस्बे से करीब 5 किलोमीटर दूर चिलकाना गांव में श्री खाटू श्याम जी का एक बेहद प्रसिद्ध मंदिर है. कहा जाता है कि ये वही स्थान है जहां खाटू श्याम ने अपने शीश का दान दिया था. यहां आज भी वो सब चीजें है जो महाभारत के समय पर थी जैसे कि वो कुंड और पीपल का पेड़ जिसके सभी पत्तों में बर्बरीक ने एक बाण से छेद कर दिया था. ये सब देखने और खाटू श्याम के दर्शन करने लोग दूर-दूर से यहां पहुंचते है.
महाभारत में उल्लेख है कि भीम के पुत्र घटोत्कच थे और उनके पुत्र बर्बरीक (khatu shaym)थे. बर्बरीक देवी मां के भक्त थे. बर्बरीक की तपस्या और भक्ति से प्रसन्न होकर देवी मां ने उन्हे वरदान में तीन बाण दिए थे. उन में से एक बाण से वो संपूर्ण पृथ्वी को नष्ट कर सकते थे. ऐसे में जब महाभारत का युद्ध चल रहा था. महाभारत का युद्ध शुरू होने के समय बर्बरीक ने अपनी माता हिडिंबा से युद्ध में भाग लेने की इच्छा जताई. इस पर हिडिंबा ने सोचा कि कौरवों की सेना विशाल है, जबकि पांडवों की सेना छोटी और कमजोर है. इसलिए उन्होंने बर्बरीक से कहा कि उन्हें हमेशा हारने वाले पक्ष की ओर से युद्ध करना चाहिए. माता की आज्ञा का पालन करते हुए बर्बरीक महाभारत के युद्ध में शामिल होने के लिए निकल पड़े. लेकिन श्रीकृष्ण को भलीभांति ज्ञात था कि यदि बर्बरीक युद्ध के मैदान में पहुंच गए, तो उनकी युद्ध शैली के कारण पांडवों की विजय सुनिश्चित हो जाएगी, क्योंकि वह कौरवों की ओर से युद्ध लड़ेंगे. इसे रोकने के लिए श्रीकृष्ण ने एक ब्राह्मण का वेश धारण किया और बर्बरीक के पास पहुंचे.
तब भगवान श्रीकृष्ण ने बर्बरीक से उसका शीश दान में मांगा. बर्बरीक ने बिना किसी संकोच और प्रश्न के अपना शीश दान स्वरूप भगवान श्रीकृष्ण को अर्पित कर दिया. इस अद्वितीय त्याग से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण ने कहा, “कलयुग में तुम मेरे नाम से पूजे जाओगे. तुम्हें श्याम के नाम से जाना जाएगा, तुम कलयुग के अवतार कहलाओगे और हारे का सहारा बनोगे.”
जब घटोत्कच के पुत्र बर्बरीक ने अपना शीश श्रीकृष्ण को समर्पित किया, तब उन्होंने महाभारत का युद्ध देखने की इच्छा प्रकट की. श्रीकृष्ण ने उनकी यह अभिलाषा पूरी करने के लिए उनका शीश एक ऊंचे स्थान पर स्थापित कर दिया, जहां से बर्बरीक ने संपूर्ण महाभारत युद्ध का साक्षात्कार किया. युद्ध समाप्त होने के पश्चात, श्रीकृष्ण ने बर्बरीक का शीश गर्भवती नदी में प्रवाहित कर दिया. कालांतर में, बर्बरीक का यह शीश गर्भवती नदी के प्रवाह के साथ खाटू (जिसे उस समय खाटुवांग कहा जाता था) में आ पहुंचा. आज यह स्थान बाबा श्याम के भक्तों के लिए अत्यंत पवित्र तीर्थ स्थल बन चुका है. बता दें कि गर्भवती नदी, जो 1974 तक विद्यमान थी, अब लुप्त हो चुकी है.
स्थानीय मान्यताओं के अनुसार, एक पीपल के पेड़ के पास रोज़ाना एक गाय अपने आप दूध बहा देती थी. जब यह घटना लगातार होने लगी, तो ग्रामीणों ने उस स्थान की खुदाई की. खुदाई के दौरान वहां से बाबा श्याम का शीश प्राप्त हुआ. यह शीश फाल्गुन माह की ग्यारस के दिन मिला था, इसी कारण बाबा श्याम का जन्मोत्सव हर साल फाल्गुन ग्यारस के दिन बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है. खुदाई के बाद, ग्रामीणों ने बाबा श्याम का शीश चौहान वंश की नर्मदा देवी को सौंप दिया. नर्मदा देवी ने बाबा श्याम के शीश को गर्भगृह में विधिवत स्थापित किया. जिस स्थान पर बाबा श्याम का शीश प्राप्त हुआ था, वहां एक पवित्र श्याम कुंड का निर्माण कराया गया, जो आज भी श्रद्धालुओं के लिए आस्था का केंद्र है.
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